सोनाली बेंद्रे के मामले ने फ‍िर समझाया कैंसर की जल्‍दी जांच का महत्‍व

सोनाली बेंद्रे के मामले ने फ‍िर समझाया कैंसर की जल्‍दी जांच का महत्‍व

इस साल के आरंभ में अभिनेता इरफान खान और अब सोनाली बेंद्रे को हाई ग्रेड कैंसर की खबर ने इन अभिनेताओं के प्रशंसकों को तो दुखी किया ही है देश के आम आदमी के सामने भी एक मौका उपलब्‍ध कराया है कि इन मामलों के जरिये वो कैंसर को करीब से जानने का प्रयास करें। एक ऐसी बीमारी जिसका नाम ही लोगों में दहशत भर देता है,  अधिकांश लोगों के उस बीमारी के सामने हार मान लेने की मुख्‍य वजह ही यही होती है कि लोग अपने इस दुश्‍मन के बारे में पहले से कुछ जानते ही नहीं हैं।

पुरानी कहावत है कि किसी भी संघर्ष की स्थिति में अगर आपको दुश्‍मन की ताकत की सटीक जानकारी हो तो आधी लड़ाई आप वैसे ही जीत चुके होते हैं। ये बात कैंसर के साथ लड़ाई में भी कही जा सकती है। दरअसल कैंसर के इलाज के लिए जरूरी है कि शरीर में इस बीमारी के पनपने के समय की हमें इसकी जानकारी हो जाए। ये तभी संभव है जब हम कैंसर के लक्षणों को ठीक से पहचानें। कैंसर के बारे में जहां से भी संभव हो वहां से जानकारी जुटाएं और इसके लक्षणों से मिलते जुलते लक्षण होने पर सतर्क हो जाएं और कैंसर की जांच करवाएं।

सबसे पहले तो ये जानें कि आखिर कैंसर है क्‍या?

ये तो हम सभी जानते हैं कि हमारा शरीर कोशिकाओं यानी सेल्‍स से बना है और शरीर में कोशिकाओं का निर्माण सतत प्रक्रिया है। कोशिकाओं में विभाजन होता है और नई कोशिका का जन्‍म होता है। समय बढ़ने के साथ पुरानी कोशिका मृत होती जाती है और नई कोशिका उसका स्‍थान लेती रहती है। स्‍वस्‍थ शरीर में यह प्रक्रिया सतत रूप से चलती है। दिक्‍कत तब होती है जब कोशिकाओं के निर्माण की यह प्रक्रिया शरीर के किसी भाग में अनियंत्रित हो जाती है। यानी कोशिकाओं का निर्माण तो होता है मगर पुरानी कोशिकाएं मृत नहीं होती हैं। ऐसे में किसी एक जगह ये कोशिकाएं गांठ बना देती हैं। ये गांठ दो तरह की होती है, कैंसरकारक और गैर कैंसरकारक। गैर कैंसर वाली गांठ जहां बनती है वहीं तक सीमित रहती है और आमतौर पर ये हानिकारक नहीं होती मगर कैंसर कारक गांठें शरीर के किसी भी दूसरे हिस्‍से में फैल सकती हैं और ये स्‍वस्‍थ कोशिकाओं के निर्माण की प्रक्रिया को रोक देती है। वैसे कैंसर हमेशा गांठ के रूप में हो ये अनिवार्य नहीं है। ल्‍यूकेमिया, लिम्‍फोमा, मायलोमा आदि कटेगरी में कई बार गांठ नहीं बनती है।

कैसे पता लगता है कैंसर का?

आजकल कैंसर की सबसे आसान जांच पेट सीटी (PET CT) स्‍कैन के जरिये होती है जो शरीर के किसी भी हिस्‍से में पनपी गांठ की सटीक जानकारी मुहैया करा देती है। पेट सीटी स्‍कैन में कोई गांठ सामने आने पर उस गांठ की बायोप्‍सी करवाई जाती है और इससे अंतिम रूप से ये प्रमाणित होता है कि वो कैंसर की ही गांठ है या नहीं और अगर कैंसर की ही गांठ है तो ये किस प्रकार का कैंसर है। इस रिपोर्ट के सामने आने के तत्‍काल बाद कैंसर रोग विशेषज्ञ अपना काम शुरू कर देते हैं। इसके अलावा रक्‍त की जांच के जरिये बिना गांठ वाले कैंसर का पता लगाया जाता है।

इलाज क्‍या है?

कैंसर का इलाज तीन तरह से किया जाता है, ऑपरेशन, दवा (कीमो) और रेडियेशन के द्वारा। कुछ मरीजों में सिर्फ कीमो थेरेपी से ही कैंसर का खात्‍मा हो जाता है तो कुछ में ऑपरेशन करके गांठ निकाली जाती है और उसके बाद कीमो दिया जाता है। इसी प्रकार कई मरीजों में रेडिऐशन देकर गांठ को सुखाया जाता है और अगर पूरी तरह गांठ खत्‍म न हुई हो तो उसे ऑपरेशन के जरिये निकाला जा सकता है। यानी कैंसर के इलाज के लिए अब कई आधुनिक तरीके अपनाए जा रहे हैं और कई नई तरह की दवाएं भी आ गई हैं जिसके कारण अब ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों की जान बचाने में चिकित्‍सक कारगर होने लगे हैं।

कितना समय लगता है?

कई बार ये इलाज कुछ महीनों से लेकर सालों तक चलता है। ये पूरी तरह कैंसर के फैलाव, उसकी स्थिति और उसके प्रकार पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए हम सोनाली बेंद्रे का ही मामला लेते हैं। मीडिया में आई खबरों को मानें तो सोनाली को metastasis हो गया है। इसका अर्थ है कि शरीर के किसी एक अंग में कैंसर पहले पनपा और उसके बाद उसने शरीर के किसी दूसरे हिस्‍से को भी चपेट में ले लिया। metastasis की स्थिति में हो सकता है कि प्राथमिक कैंसर के बाद ये बीमारी पूरे शरीर को ही अपनी चपेट में ले ले। ऐसे में इसका इलाज बेहद मुश्किल हो जाता है और आमतौर पर मरीज के बचने की उम्‍मीद बहुत ही कम हो जाती है।

दूसरी ओर अगर कैंसर शरीर के किसी एक ही अंग को प्रभावित किए हुए हो तो इलाज आसान होता है। ऑपरेशन, कीमो या रेडिएशन द्वारा उस गांठ को खत्‍म किया जाता है। इसके बाद एक निश्चित अवधि तक मरीज की नियमित रूप से निगरानी और जांच की जाती है ताकि पता चले के दोबारा तो कहीं गांठ नहीं बनी है। अगर लंबे समय तक ऐसा नहीं हुआ तो मरीज को कैंसर मुक्‍त घोषित कर दिया जाता है। हालांकि कई मामले ऐसे हुए हैं जिनमें कैंसर मुक्‍त होने के कई साल बाद फ‍िर से कैंसर ने शरीर को अपनी जकड़ में ले लिया।

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।